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Showing posts from 2016

पशोपेश

अजीब सी पशोपेश है ज़िन्दगी सच नज़र नहीं आता झूठ समझ नहीं आता मैं तेरे साथ तो हूँ पर तू दिल में ही आता है जुबाँ पे नहीं आता तेरे जैसा सितमगार नहीं कि यूँही याद आके मुड़ जाऊँ मैं तो ...

वक्त कब बदलता है

सूरज उगे या डूबे हमे क्या हमें तो अपने प्रकाश से उजाला बिखेरना है मंज़िल दूर हो या पास हमें क्या हमें तो बस चलना है वक्त कब बदलता है बदलना तो हमें है शाम नही बदलती सुबह फिर वही ...

बूढ़ा गया अपना पहाड़

ये क्या! कहाँ खो गयी हरियाली मैं केवल यही देख सका इतने बरस तो हुए नहीं बूढ़ा गया अपना पहाड़ सच में हरे-भरे जंगलों से भरा था आज बूबू के सिर जैसा टकला अपना पहाड़ सुरक्षा के लिए, सुवि...

जीवन

जीवन लग जाता है जीवन बनाने में एक जीवन है कि उसका कोई हिसाब नहीं है।               ए जीवन चल कि मिल के बात करें आज             एक रास्ता मैं बनाता हूँ एक रास्ता तू भी बना         ...

माँ

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ये दिन ये वक्त बिल्कुल वही है हूबहू वही है यूँ तो रात भर सोया मैं भी ना था   आँखे पथराई थी मेरी हाँ लोग कहते भी है जाने वालों के लिए कौन रोता है पर  याद तो है मुझे माँ पापा की गोद म...
आज के समय में पहाड़ के गांव जिस तरह ख़ाली हो रहे हैं उस दशा में पहाड़ की दशा देखें किस तरह रो रहा हैं पहाड़ । अरे विकास के ठेकेदारों पलायन की गति तो देखो विकास तुम्हारा कहाँ गया? रो...

बहुत मज़ेदार है ये हार।

कभी क्रोध भर जाता है तो कभी ढूंढने लगते प्यार कभी चलना भी दूबर होता कभी दौड़ने लगती कार अन्य विकल्पों को गर सोचें तो हैं बहुत मज़ेदार ये हार अहम् भाव को तोड़ती है सही राह में मो...

क्या

ओ समाज-समाज रोने वालों कभी समाज को देखा है क्या आधी थालियां फेंकने वालों भूखे की आँखे देखि है क्या बड़ी-बड़ी फेंकने वालों कभी किसी गरीब का हाथ थामा है क्या पैसे की भूख में मरने ...

आज का युवा

बीत चुका बचपन ढल रही जवानी अक्ल अब तक न आई ये है आज के युवा की कहानी कॉलेज है पूरा होने को आया अब आगे की है परेशानी हो गए बाहर हर इंटरव्यू में अब याद आई मस्तियों की रवानी पढ़ा ह...

14 अगस्त 2009 को लिखी गयी पंकियां

पक्षियों की चहचहाहट में, भौरों की गुनगुनाहट में, मुझे जीवन का खालीपन नज़र आता हैं। पत्तो की सरसराहट में, पशुओं की फुसफुसाहट में, मुझे जीवन का सूनापन नज़र आता हैं। सूरज की गरमा...

दिल के दर्द को बयां न करना

दिल के दर्द को बयां न करना दुनिया की तो आदत हैं दया न करना दर्द-ए-दिल सुनते हैं बड़े गौर से हँसते भी हैं पीछे बहुत जोर से दर्द बाँटने की चाहत कभी न रखना पर बांध के पोटली सभी न रखना ...

तो कहूँ....।

पर पैरों से मन्ज़िल पाई तो क्या ? अपने पैरों में खड़े होके दिखाओ तो कहूँ! बने पथ पर दौड़े तो क्या अपनी राह बनाओ तो कहूँ सफल बनके हँसे तो क्या असफल होक मुस्कराओ तो फिर कहूँ अर्जुन ब...

परेशान ना हो

रात तो होनी ही हैं, परेशान मत हो काँटों को देखके हैरान मत हो रात न होती तो दिया ना जलता काँटे न होते तो फूल ना खिलता दुःख समझकर मत गवां इस पल को यही तो जीवन का एहसास हैं असफलता तो...