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Showing posts from February, 2019

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बहुत लम्हों को लिए गर्व किये, अकेले रहना था खुद ही लम्हात सर्व किये, गमों की पोटली कसकर रख दी, उनके लिए हर दिन पर्व किये. मुखातिब होते रहे अंधेरे से हम, मगर उनके ख़ुशी के हर ठिये र...
रोना रोज रोते रहे तुमसे दूर होने का, गुफ्तगूं बहुत किये, के मिलन हो वर्षों बाद मुखातिब हुए तो मालूम पड़ा, तुम तो तुम ही थे हम ही हम न रहे
खफा यूँ नहीं हुए कि मोहोब्बत कम हुई, हृदय बोझिल बहुत था आंखें जरा सी नम हुई, परिवर्तन-ए-हाल कुछ तो हुआ होगा न यारा, छरहरी काया यूँही थोड़े न शिकम हुई.
लो कुछ फासले तो कम हुए कि पौ फट गई अब, खूब जिम्में से पाला पाँच बच्चों को जिसने, बारी मां की आई तो कुछ हिस्सों में बंट गई अब.

उद्दीपन

वही शाम, वही समय, वही हसरत मेरी' क्या कोई इंतज़ार में होगा.? उमड़-घुमड़ करते बदरा , गति लिए भागने को है' क्या उन्हें भी कहीं जाना होगा.? अनायास जो कदम बढ़ने थे, वो मुड़ गए आशियाँ को मेरे' क्या आज भी वो सोपान में बैठा होगा.? घर तो नहीं किराए का मकाँ है मेरा वहाँ' क्या उस मकाँ में न जाने से कोई हलचल हुई होगी.? वो तस्वीरों सी नज़र वो मुस्कान उसकी ' क्या आज भी मायूस हुई होगी.? चलो ये पंछी तो उड़ने वाला ही ठैरा, क्या उस घोसलें में पहचान बची होगी.? वो सुकूँ का दर मेरा रीता होने को बेताब दिखता है' क्या मेरा सुकून उन्हें दिख गया होगा.? कल ही तो बरसे थे जी भर बदरा, क्या सूखी जमीं में कोई अंकुरण हुआ होगा.? जमीं की बातें छोड़ तो दी थी मैंने, क्या एक बीज जो जम गया था वो पेड़ बन पाएगा.?

क़तरा.

कुछ दिनों से नहाया नहीं हूँ, विचारों का मैल जमता जा रहा है मुझ पर, बेपरवाह सा बनने को ख्वाहिश लिए गुजरता रहा बिना किसी काफ़िले के अच्छाई-बुराई को दरकिनार रखकर, कुछ तो खटका था स...

क्या वो मेरा है.?

उसकी शामें मेरी है, उसकी बातें मेरी है, उसकी शब्दावली मेरी है, उसकी रूह मेरी है, क्या वो मेरा है.? वो सम्भले बाहें मेरी है, वो चले राहें मेरी है, वो देखे निगाहें मेरी है, क्या वो मे...

वो,

एक साज, एक आवाज़, एक परवाज़.... एक बेजिरह अतीत... कि एक खूबसूरत आज.. क्या नाम दूँ उसे.? सवाल में क्रमण, बातों में भ्रमण, वर्तमान की शरण.... जीना आज का है... प्रेम उसका आमरण.. क्या बयाँ करूँ उसे.? र...