उद्दीपन
वही शाम, वही समय, वही हसरत मेरी'
क्या कोई इंतज़ार में होगा.?
क्या कोई इंतज़ार में होगा.?
उमड़-घुमड़ करते बदरा, गति लिए भागने को है'
क्या उन्हें भी कहीं जाना होगा.?
क्या उन्हें भी कहीं जाना होगा.?
अनायास जो कदम बढ़ने थे, वो मुड़ गए आशियाँ को मेरे'
क्या आज भी वो सोपान में बैठा होगा.?
क्या आज भी वो सोपान में बैठा होगा.?
घर तो नहीं किराए का मकाँ है मेरा वहाँ'
क्या उस मकाँ में न जाने से कोई हलचल हुई होगी.?
क्या उस मकाँ में न जाने से कोई हलचल हुई होगी.?
वो तस्वीरों सी नज़र वो मुस्कान उसकी'
क्या आज भी मायूस हुई होगी.?
क्या आज भी मायूस हुई होगी.?
चलो ये पंछी तो उड़ने वाला ही ठैरा,
क्या उस घोसलें में पहचान बची होगी.?
क्या उस घोसलें में पहचान बची होगी.?
वो सुकूँ का दर मेरा रीता होने को बेताब दिखता है'
क्या मेरा सुकून उन्हें दिख गया होगा.?
क्या मेरा सुकून उन्हें दिख गया होगा.?
कल ही तो बरसे थे जी भर बदरा,
क्या सूखी जमीं में कोई अंकुरण हुआ होगा.?
क्या सूखी जमीं में कोई अंकुरण हुआ होगा.?
जमीं की बातें छोड़ तो दी थी मैंने,
क्या एक बीज जो जम गया था वो पेड़ बन पाएगा.?
क्या एक बीज जो जम गया था वो पेड़ बन पाएगा.?
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