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Showing posts from 2023
हाथ की चंद रेखाओं का खेल है देखो, कोई मुकद्दर बन गया, कोई बिछड़ गया,
नींद न मार, खुद को उनींदा न कर, जो मर गया प्रेम, उसका मरने दे, यूँ घड़ी-घड़ी न सता, उसे जिंदा न कर, होंगी कुछ खूबियां भी तेरे यार में, यूँ हर बात में उसकी निंदा न कर, नींद न मार, खुद को उनींदा न कर।
बातें आधी, रातें आधी, जमीं आधी, ये नमी आधी, इश्क़ आधा, रश्क आधा, सफर आधा, जफर आधा, साथ आधा, नांद आधा,   पूनम का देखो ये चांद आधा।
बंटा हुआ हूँ, मेरे है कई हिस्से यहाँ, कुछ दफन हो गए दरख़्त की शाख में,  कई चल रहे हैं किस्से यहाँ।
न मेरे आँसू, न मेरी आवाज, कौन देखें, कौन सुने आज। 2012 ¿ 2023

सन्देश

क्या ये हवाएँ डाक नहीं लाती? सुनो! सन्देश भेजा था तुम्हारे नाम  कई बार पहले, पूछना था, कहां हो तुम, कैसे हो? कुछेक बातें थी करने को, कुछ बीता समय रोने को। जवाब न आया, न ख्वाबों के शहर में कुछ रोनक दिखी, न कलम ने लहू ही उगला अबकी। सोचता हूँ चिंता हो कोई  या खबर होगी कोई अच्छी।

प्रेम

प्रेम  सहजता है, प्रेम सरलता है, प्रेम निश्छलता है, प्रेम सुंदरता है, प्रेम सरसता है, प्रेम आकर्षण है, प्रेम समर्पण है, प्रेम श्रद्धा है, प्रेम अंधा है, प्रेम प्राच्य है, प्रेम सुपाच्य है, प्रेम  अनुभूति है, प्रेम अभिभूति है, प्रेम कलंदर है, प्रेम बंदर है, प्रेम बाहर है, प्रेम अंदर है, प्रेम लॉंछनीय, प्रेम वांछनीय, प्रेम चुनौती, प्रेम कटौती, प्रेम अंधियारा, प्रेम उजियारा, प्रेम तुम सा है, प्रेम हम सा है।
अक्सर रोने की बातें बस स्त्री के हित में कही गई, लिखी गई और व्याख्या की गई। पर सच तो ये है कि मरद भी रोता है, हालात न हों काबू में जब, बनाकर न बनने लगे तब, ढूंढ एक संजीदा एकांत किनारा मरद भी रोता है, हाँ मरद भी रोता है। जब पिता गैर नियत निकले, माता भाव हीन निकले पुत्र नालायक निकले, पुत्री निर्लज्ज निकले, पत्नी कुलटा निकले, भाई कसाई निकले, बहन सूर्पनखा बन जाये, समाज दानवी हो जाये, अपने नोंच खाने लगे, तब  एक मरद रोता है मरद के आँसू नहीं दिखते अक्सर पर जब रोता है तो बाढ़ आ जाती है, कई बस्तियां समा जाती है उसमें।
सुबह से शाम हो जाती, न बबा न मम्मी नजर आती, कुछ इस तरह बीत रहा बचपन मेरा, साँझ मैं घर इनको पाऊँ, बस नींद में ही सहर हो जाती।

कौंला रस्ता

कौंली उमर, कौंला प्रेम, कौंला-कौंला रस्ता ठैरा, नीली कमीज, खाकी पेंट, एक कांधे में बस्ता ठैरा, फौजी बनूँल, ब्याह करूँल, सपना उसका सस्ता ठैरा। ऊँचे-ऊँचे पहाड़ ठैरे, हाल पर खस्ता ठैरा। कौंली उमर, कौंला प्रेम, कौंला-कौंला रस्ता ठैरा।

हिमालय की गंध

टप-टप गिरते पानी की आवाज़, बाहर आती भयंकर नदी, बादल और पत्थरों के खिसकने की डरावनी आवाजें, घर में कैद करने के लिए बहुत था यह सब कुछ पर  घर में टिके नहीं रहना, उसके दो कारण थे एक तो बरसात में घर रोता बहुत था और दूसरा कारण था कि घर में अपनी उम्र का कोई नहीं था मुझसे बड़ा भाई जो कि मुझसे 9 साल बड़ा था। कुल मिलाकर घर में रुके रहने का कोई सवाल ही नहीं था, फिर भी घनी बारिश में रुके रहना मजबूरी थी। आज बच्चे के साथ सोचता हूँ काश उस समय भी रेन-रेन गो अवे जैसी कोई कविता सुनी होती तो जरूर गा रहा होता। हमारा बचपन अलग था पर बरसात में विशेष कर लगता कि ये बारिश होती क्यों है। ईजा बारिश से पहले ही पत्थरों में लगा हुआ ढेर सारा पाम इकट्ठा कर लेती थी और उसे छत में लगे पत्थर के स्लेटों के ऊपर ऐसे बिछा देती थी कि पत्थर चूंकर घर को रुलाये नहीं, ये पियास कई हद तक सफल भी होता था पर सतझड़ी यानि लगातार 7 दिनों की बरसात होने या फिर कई बार 2-3 दिन की बारिश में ही घर रोने लगता फिर हर जगह जहाँ से पानी चूंकर गिरता था वहाँ बर्तन रख देती थी ईजा। बर्तन भरने का  इंतजार  करो फिर उसे फेंको फिर भरने दो फिर फेंको ...

बिन मतलब

कभी बनके शाम आजा, कभी बिन बात के सहर बन। नीरस से गांव के गुण क्यों, चल ना आबाद जैसे वो शहर बन। अच्छा तो क्या नहीं लगता, सब लगे है, कभी बिन मलतब आये जैसे वो पहर बन। क्या पा लिया है उस रस्ते चल-चलाकर, गौरव से जहाँ चल सके, चल ना; वो डगर बन। कितना सरल बना दिया है ना तूने इसे! जीवन है तेरा । आके सब फँस जाये,  चल ना वो भँवर बन। कभी तबाही की लहर बन, कभी चमचमाती दोपहर बन, कभी बनके शाम आजा,   कभी बिन बात के सहर बन।

राम

राम राम राम जय श्री राम अंश राम, अंग राम, अम्ब राम, अंतरंग राम, कीर्ति राम, अकीर्ति राम, गम राम, अगम राम, अधिक राम , जगत में हरेक कम  राम। अबोध राम, अभ्यम राम, अभद्र राम, सभ्यम राम।
मेरे राम, मेरी रमायण, मेरी गाथा में न  कोई मंथरा है न कैकई है, कोई विभीषण नहीं  और न कोई रावण है। सब लक्ष्मण, भरत जैसे हैं, सब सुग्रीव, हनुमान से हैं।

इश्क का उत्सव

      इस तरह चलो ये माह चलाएं,      इश्क़ का उत्सव मनायें, प्रेम की डोर में कुछ वासव लायें।             तुम चंदा कहो,            मैं चाँद कहूँ तुम्हें,           तुम छबीला कहो,            मैं बांद कहूँ तुम्हें, तुम कहो मुझे सबेरा,    मैं साँझ कहूँ तुम्हें,          सुमन तुम संगीत कहो,         मैं नाँद-निनाद कहूँ तुम्हें। तुम चंदा कहो,            मैं चाँद कहूँ तुम्हें
अमृता आती रही जाती रही यहाँ बहुत, मुझे बताओ कौन फिर से इमरोज हुआ, शायरों की दुनिया में साहिर हुए बहुत पर, मुझे बताओ कौन प्रीतम हर रोज हुआ।