दरख़्त
रह गया अनसुना दीवारों के पीछे, कुछ राज दफन हुए उन दरख्तों के पीछे, बन्द किये थे बीते शरद हवा के डर से, कोई सुराखी का हुनर जानता हो तो आये, चर्चा है कि कुछ तबाह हुआ था, राज़-ए-निहाँ ...
मेरी डीठ से दुनिया.... और फाम में बसा अतीत...... (डीठ-दृष्टि फाम-याद)