कैसे भूल जाऊं
वो मेरे बुरे दिनों का साथी था,
उसे कैसे भूल जाऊं,
वो मेरी आग का पानी था,
उसे कैसे भूल जाऊं,
वो दौर मेरी ज़िंदगी का जहाँ कोहरा ही कोहरा था फैला हुआ,,
वो मेरी राह का जुगनू था कैसे भूल जाऊं,
माना कि मेरी रूह तक कोई क़तरा ही पहुँच पाया होगा उसका,
तब वो मेरी खुशियों का ढाँचा था कैसे भूल जाऊं,,
मेरी तन्हाई,मेरा अपराधबोध,,मेरा सरोकार,
वो मेरा हमसफ़र था कैसे भूल जाऊं,
तारीखी बनकर रह गया है ये हम दोनों के सपनों का दयार,,
वो मेरा चलता-फिरता संसार था कैसे भूल जाऊं,,,
आज भी बाहों में मेरी गर कोई हो तो वो ज़रूर याद आता है,
वो मेरे जिस्म की बेड़ी था ,कैसे भूल जाऊं,,
कुछ मैं बेवफ़ा निकला कुछ वो रुसवाई कर गया,
पर वो मेरी ढाल था कैसे भूल जाऊं,,.....
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