अक्स

जरा सा अक्स देख लूँ तो पूरे दिन उतरता ही नहीं,
तू होता तो चढ़ लेता सारी सीढ़ियों को शायद, यूँ तो कभी उतरता ही नहीं..

तू होता तो चमक इन सीढ़ियों की खिंचतीं रहती अपनी ओर, चमकदार होता मैं भी कभी धुंधलाता ही नहीं...

सच तो ये है कि अब हर सीढ़ी चढ़ते महसूस करने लगा हूँ तेरे घुटने के दर्द को,
तू जो होता तो ये दर्द आँखों से कभी छलकता ही नहीं..

पेशानी कुछ भारी सी लगती है आजकल, मुझे आँखों में बैठा कर रखना तेरी भूल थी,
ये आँखे साथ होती तो किसी की नजरों से कभी गिरता ही नहीं ..

मेरे हँसने से रूठ जाता तो बात थी,
मेरे रोने से रूठ जायेगा, पता जो लगता तो मैं कभी रोता ही नहीं...

बड़ी सहजता से जिम्मेदार बना गया,
छोड़ जाने की भनक लगती तो मैं बच्चा ही सही था, कभी अपना कद बढ़ाता ही नहीं...

इल्म ही न था इतना अकेला भी रहना होगा किसी दिन जीवन की जंग में,
मालूम जो होता तू भी मुकर जाएगा, मैं ये जंग कभी लड़ता ही नहीं...

जरा सा अक्स देख लूँ तो पूरे दिन उतरता ही नहीं.......

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