डीठ, जरुरी तो नहीं...

चले जाओगे क्या उन बदुरस्त राहों में,
बल जहां ठौर-ठिकाने बमुश्किल मिला करते है,
एक लेख बन जाओगे गर चले गए,
क्या सच में उस राह मुड़ जाओगे?

मुड़ना हुआ भी तो बस एक लेख की खातिर....

अगले ही मोड़ पर जिन्दगी करवट ले लेगी,
बस देखना रह गया कि ये किस करवट चलती है?
देखो मेरी तरफ मुड़ी तो शुक्रिया जिन्दगी,
उस तरफ मुड़ी तो शुभकामनाएं मेरी।

मेरी भावनायें सीमाओं में बंध जाएंगी
मेरे हरफ़ हर दिशा मुड़ेंगे और मुड़कर कुरेदने दौड़ेंगे।

सवालात बहुत हो गए मुझसे, मुझमें आकर,
हर जवाब को पिरोकर रख जाऊंगा यहाँ,
जरा एक डीठ लगा देना किसी रोज आकर।

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