वो अतीत था...!

एक लम्हा बसर नहीं होता हमसे,
तुम जीवन संग लेने को कहते हो,

वो दौर जुदा था समझाऊं कैसे,
तुम अबके दौर में भी उन तक चलने को कहते हो,

वो जो बीत चुका अतीत था अब जुड़ा नहीं है मुझसे,
तुम अब भी उनसे नज़रें चार करने को कहते हो,

मेरी इच्छाएँ अलग थी उसकी शंकाएँ भिन्न मुझसे,
तुम अब भी उसी को जी लेने को कहते हो,

क्या बयाना दूँ कि सच अब भी नहीं कहा जायेगा उनसे,
तुम अब भी साया बनाने को कहते हो,

बड़ा अन्तर्द्वन्द है मेरा मुझसे; उनका भी मुझसे,
मैं बदल न पाऊँगा फिर भी साथ लेने को कहते हो,

कभी तो शंका रहित निगाह रखो मुझपे,
शंका जनित सबकी निगाहें रखकर उनके संग जीने को कहते हो..!

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