अन्तर्द्वन्द
उस एक महल की ख्वाहिश है महलों में रहकर,
क्या कशक उठी है जाने कई बार आया हूँ उस द्वार से लौटकर,
जाने क्या रखा है उस महल की दीवारों के पीछे,
ऐसा नहीं, कोशिश-ए-दस्तक कई बार हुई, हर बार लौटा मुँह की खाकर,
कई दफा झूठा वादा भी कर लेता हूँ तुमसे,
कहीं तो वादों का सफ़र पूरा होगा सोचकर,
@डर है, उसको भरूँ तो आँख से ओझल न हो जाये कहीं,
उस द्वार में जो एक छेद रह गया था पुरानी कील निकालकर,
तेरा ख़्वाब शहर खालीपन न देखे कभी,
रोज दूसरा बो देता हूँ एक ख़्वाब तोड़ कर,
यूँ कोई प्रहरी भी नहीं, बड़ा हसीन नज़ारा है उस जहाँ का,
उससे पूछो तो कई दफे चोरी से झाँका है द्वार खोलकर,
$तुम मेरे होने का मतलब चाहे जो निकालो,
मैं खाली भग्न हूँ तुझे छोड़कर,
# पहाड़ सी मुश्किलें तोड़ता आया सदा,
चरितार्थ क्या एक चुहिया बस पहाड़ तोड़कर,
उस एक महल की ख्वाहिश है महलों में रहकर......
@ भय
$ सवाल आपसे
# सवाल खुदसे
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