"बीस हज़ार की ज़िंदगी"
आज फ़िर एक बार कृष्णा को मैंने अतीत होते देखा,,,,
बातों ही बातों में बात "सल्फॉस की तीन गोलियों" में आकर थम गई,,,,,
वो बताता है.....
बात उन दिनों की है जब ऋषभ एक एनजीओ
में नौकरी करता था ,और वहाँ पर छः महीने का वेतन एक साथ आता था,तो ऋषभ को कुछ दिनों पहले ही वेतन मिला था बहत्तर हज़ार रुपये,,,,बारह हज़ार रुपये महीने के हिसाब से,,
इन पैसों में से बीस हज़ार रुपये वापस एनजीओ के फण्ड में ही जमा करने पड़ते थे ,,
पर कुछ पैसा घर भिजवा देने के बाद ऋषभ ने वो पैसा कहाँ उड़ा दिया पता ही नहीं चला,
उड़ा दिया से तात्पर्य है कि खाना-पीना,शराब और ना जाने कहाँ-कहाँ ,,,,,,,,,
कुछ दिनों में जब होश आया कि अब तो पैसा बचा ही नहीं है एनजीओ का पैसा उसे वापस कहाँ से दिया जाएगा,,
इसी सोच में दिन-रात गुज़रते रहे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था कि आख़िर पैसा लाएं तो कहाँ से,,,,क्योंकि जो पैसा पास में था वो तो अय्यासी में उड़ा दिया,,
कोई रास्ता नज़र ना आने के कारण ऋषभ ने सोच लिया कि अब आगे-पीछे कुछ नहीं बचा ,अब बीस हज़ार रुपये देना मुमकिन नहीं हो पा रहा है तो क्यों ना ज़िन्दगी ही ख़त्म कर ली जाए,,,
"कहाँ महँगी है साहेब ज़िन्दगी भी.....बहुत हल्की-फुल्की सी और बहुत सस्ती भी ..देखो ना यहाँ पर बस बीस हज़ार की बन गयी ज़िन्दगी,,"
कृष्णा एक साँस में अपने अतीत के पन्नों को गिना रहा था.......................
जब ऋषभ कमरे में अकेला था तो उसने "तीन गोलियाँ सल्फॉस" की अपने लिए पास में रख ली थी,
ताकि वो अपनी जीवन लीला समाप्त कर सके,,,
पर कहाँ ऊपर वाले को ये मंजूर था, कुछ ही देर बाद मैं ऋषभ के पास चला गया किसी काम से,,शायद इस बीस हज़ार की सस्ती क़ीमत वाली ज़िन्दगी का उस दिन बचना होगा,,
और समझा-बुझा कर उस दिन ऋषभ को इस वक़्त की गर्दिश से बाहर निकाला ,क़ीमत बताई उसको अनमोल ज़िन्दगी की,,
आज कृष्णा ने उसकी बीस हज़ार रुपये की सस्ती समझी जाने वाली ज़िन्दगी की असल क़ीमत उसको बताई,,,
वो जो बीस हज़ार रुपये देने थे एनजीओ को वो पैसे कृष्णा ने अपने तीसरे मित्र कार्तिक से मांग कर चुका दिए ,,,
असल में यारी बड़ी अतरंगी है कृष्णा की,,...........................
एक 'कृष्णा' और दो उसके दोस्त 'कार्तिक' और 'ऋषभ'.......
कार्तिक की नौकरी में लग जाने के बाद ऋषभ का वो दौर शुरू हुआ जिसे बर्बादी कहते हैं......
और ये दौर अब तक चला आ रहा है,,
पहले मेहनत के बावजूद नौकरी का ना लग पाना और फ़िर रही-सही कसर प्रेम संबंधों ने पूरी कर दी,,
हर तरफ़ से हार यूँ खड़ी हो जाती जैसे फन उठाये कोई साँप,,,,
तीनों दोस्तों में से कृष्णा और कार्तिक नौकरी में लग चुके ,,
ऋषभ की ज़िम्मेदारी कृष्णा ने उठायी ,,,,,
कि जब तक ऋषभ कहीं नौकरी पेशा नहीं पा लेता तब तक मेरे साथ ही रहेगा,,,
पहले-पहल तो सब ठीक चलता रहा,,,,पर कुछ वक़्त बाद दोनों में तनातनी की स्थिति पैदा होने लग गयी,,क्योंकि कृष्णा को लगता कि मैं अगर कुछ कह दूँ तो ऋषभ को कुछ चीज़ बुरी ना लग जाये,
और ऋषभ को लगने लगा कि कृष्णा ना जाने क्यों मेरे लिए इतना कर रहा है,
कहीं मैं बोझ तो नहीं बनते जा रहा हूँ कृष्णा पर,
दोनों का एक दूसरे के प्रति प्रेम,सम्मान हमेशा से जीवित रहा पर फिर भी अब कुछ दूरियाँ सी हो गयी दरमियान,,,,,
कल रात फ़िर एक मसला हुआ,
फ़िर दिमाग़ में और दिल में इक जंग छिड़ी,
फ़िर से कुछ दफ़्न अतीत के पन्ने आंखें चार कर चल दिये,,
फ़िर से कुछ ज़ख्म हरे हो गए,,
कल शाम ऋषभ ने शराब के नशे में उस दुखती नब्ज़ पर फिर से हाथ रख दिया जिस नब्ज को सहलाते हुए ज़माने बीत गए थे,,,,
वो नशे में बड़बड़ाने लगा कि...........
तेरी ज़िन्दगी में रुकावट बन गया हूँ मैं,,
कहने लगा कि-कल शाम दीदी का फ़ोन आया था कह रही थी कि तेरी वजह से कृष्णा शादी भी नहीं कर पा रहा है,अपनी घर-गृहस्थी नहीं बसा पा रहा है,,
जब तक तू उसके पास रहेगा वो कैसे ख़ुद के लिए सोच पायेगा?????
कृष्णा..............! तू मुझसे बड़ा क्यों नहीं हुआ रे.…........,बस एक साल बड़ा हो जाता ना तो तू मुझे थप्पड़ भी मार सकता था,,
ऋषभ बिना रुके नशे में बेबाक़ बोले ही जा रहा था,,,,......जाने क्या-क्या...........वो सब भी जो नहीं बोलना चाहिए था,,, ..............
.वो सारी बातें कृष्णा के दिल को कटार की तरह चीरकर आर-पार होती जा रही थी,,.........
उसी लहूलुहान हालत में कृष्णा कभी ख़ुद को तो कभी वक़्त को कोस रहा था,,,,,
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और कृष्णा पूरी रात गरम निःस्वास के साथ बस इन्हीं प्रश्नों से घिरा रहा कि ...........
आंखिर गलत हो क्या रहा है?
परेशानी का कारण क्या है?
रिश्तों को निभा कर यहां तक तो ले आया अब आगे का सफ़र कैसे तय होगा????????
ये तब की बचाई हुई बीस हज़ार की ज़िंदगी ना जाने कितनी क़ीमत अदा करवाएगी.....................
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