डिग्री

डिग्री, बीस जमा तीन बरस के बाद मिली,
ऐसी अद्भुत कि उसे भूत नहीं बनते देखना,

वो दीद की बातें, ये इंतज़ार के लम्हें,
कुछ आधार तो दे जाएंगे हमें,

धड़कनों के सागर में नैय्या हमने उतार रखी है,
दिन भर भरी दुपहरी व्यस्त था मैं मस्त था मैं,
सुनो, फिर तुम याद आये हो शाम की सर्द हवा की तरह,
हृदय इतना भारी हो गया ज्यूँ वस्त्रों का भार बढ़ने लगा हो,

नज़र मिली थी जब शाम अंधेरे में बिछड़ते,
कुछ शिकायतें तुम जैसे करना चाहते थे,

ये शिकायतों का सिलसिला कबसे शुरू हुआ,
जान पड़ता है मिली बददुआ या किसी ने की है दुआ,

धरोहर, अमानत, बरकत, सहूलियत,
सामने नहीं पर साथ है सदा मेरी जम्हूरियत,

सुनना पसंद है क्या तुम्हें सब सुन ही लेते हो बल,
'अमोल' समझो न मुझे यारा अरे अभी बेमोल था मैं कल।

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