तीन साल नौकरी के हो गए आज, सपनों के पेड़ बालमन से ही गहन जड़े जमाये हुए थे, जो कभी नाउम्मीदी के भयकंर दौर से गुजरे तो कभी उम्मीदों के चरमोत्कर्ष से। बड़ा गहरा दर्द सा जमा महसूस हो रहा है, कहने को पाया-खोया बहुत कुछ यहाँ आकर आंकलन करने का मन था तो लिखने बैठ गया। आज ही के दिन तीन वर्ष पूर्व सरकार की नौकरी करने को देहरादून शहर में प्रविष्ट हुआ था। नौकरी से वैसे तो पुराना नाता रहा है, प्रथम बार 12वीं करने के बाद प्रयास शुरू कर दिया था। नौकरी का पहला अवसर सेवायोजन कार्यालय द्वारा आयोजित रोजगार मेले के माध्यम से चयनित होकर एक सुरक्षा कम्पनी में चयन से मिला। चयन होने की थोड़ी-बहुत खुशी थी। BPL श्रेणी के अंतर्गत होने से फ्री ट्रेनिंग हेतु इसी शहर देहरादून का रूख हुआ। साल था 2009 जब 12वीं बस उत्तीर्ण ही कि थी, सेलाकुइं के निकट कहीं राजावाला के जंगल मे था वो ट्रेनिंग सेंटर जहाँ से मात्र 4 दिनों में ही मात्र 6000₹ जमा न कर सकने के कारण निष्काषित कर दिए गए थे। सपने टूटने का अनुभव तो बचपन से ही था, फिर भी रुआंसा सा मन लेकर वापसी की ओर रूख किया। जेब में टिकट के बराबर ही मात्र ₹ ...
रूही की ज़िंदगी तलाक के बाद कई सवालों और तानों से भरी हुई थी। समाज की नजरों में वह अब सिर्फ "अकेली तलाकशुदा औरत" थी, जिसकी ज़िंदगी पर लोग अपने हिसाब से राय बनाने लगे थे। लेकिन रूही के लिए यह सफर बस अपने बेटे के भविष्य को संवारने का था। वह अपनी मम्मी बहनों और भाई के घर रह रही थी, मगर कभी-कभी ऑफिस से मिले अपार्टमेंट में भी रुक जाती थी। ऑफिस में उसके कई साथी थे जिनमें से एक था रोहन । वह उसका सहकर्मी था, लेकिन रूही उसे भाई जैसा मानती थी और सम्मान देती थी। रोहन शादीशुदा था, एक नन्हीं बेटी का पिता भी था, लेकिन उसकी एक कमजोरी थी— शराब । वह अक्सर पीता था, कभी-कभी हद से ज्यादा। रूही की ज़िंदगी में एक व्यक्ति था—एक दोस्त, जो कभी-कभी उससे मिलने ऑफिस के अपार्टमेंट आता था। रोहन को यह बात खटकने लगी। उसे लगने लगा कि रूही का इस व्यक्ति के साथ कोई रिश्ता है। यह सोचते-सोचते वह रूही के प्रति अपनी सोच बदलने लगा, मानो उसकी 'अकेलापन' किसी और चीज़ की मांग कर रहा हो। पहली घटना – एक भयानक रात उस रात रोहन बुरी तरह नशे में था। वह लड़खड़ाते हुए रूही के दरवाजे पर आया। "रूही, मैं समझ सक...
आज के समय में पहाड़ के गांव जिस तरह ख़ाली हो रहे हैं उस दशा में पहाड़ की दशा देखें किस तरह रो रहा हैं पहाड़ । अरे विकास के ठेकेदारों पलायन की गति तो देखो विकास तुम्हारा कहाँ गया? रो...
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