सखा
झोलिदा सा सफर,
कोई ज़हीर न हुआ,
फ़ाकिर से घूमते रहे,
कोई शरीर न हुआ ।
इज्तिराब भीतर आह भरती रही मेरे,
अचंभा है कभी इज़्हार न हुआ,
आतिशबाजी में इस कदर रहे मदहोश उनकी,
आगजनी हुई जानकर भी अफ़सोस न हुआ।
पशेमानी भी होती तो क्योंकर, किसपर.?
मीत थे मेरे मैं नारास्ती न हुआ।
सखाबाजी बड़ी सदय रही मेरी,
आहार बनता गया कभी गरिष्ठ न हुआ।
कुछ तासीर भी सही रही, कुछ देन भी उनकी,
वो साथ रहे कि हमसफ़र मालूम न हुआ,
📝
झोलिदा- अस्त-व्यस्त
ज़हीर- साथी
फ़ाकिर- अभिमानी
इज्तिराब- घबराहट
पशेमानी- पश्चाताप
नारास्ती- कपटता
सदय- दयाभाव युक्त
गरिष्ठ- कठिनाई से पाच्य
तासीर- प्रभाव
🙏
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