उनके होने की बीमारी
जाने मुझ तक मेरी पहुँच कहाँ तक रही,
उनके होने की बीमारी कहाँ तक रही,
हर नज़र से अलग ख़्वाब सजाये थे मैंने,
मेरे हृदय में उनकी समायी कहाँ तक रही.
मेरे वालिद कहा करते थे मुझे अब समझ आया,
बड़े माहिर होते है तूफ़ाँ बेटे,
हर झोंकें से वो ख्वाबों के बीज लेते रहे,
जाने किस खेत उनकी बुआई रही.
उनके होने की बीमारी कहाँ तक रही...
लम्हां ये भी बड़ा छोटा सा निकला,
कल ही थे बालक,
जाने जवानी की ललक कहाँ तक रही.
मुझ तक मेरी पहुँच कहाँ तक रही...
वो किया करते थे सदा रूसवाई की बातें,
उनको क्या मालूम मोहोब्बत कहाँ तक रही,
आने दो और कुछ बेड़ियाँ पावों में,
देखते है वो आरी कहाँ तक रही.
उनके होने की बीमारी कहाँ तक रही.🖋️..🔤
जाने मेरी पहुंच उसके दिल तक कहाँ तक है,पर उसकी आँखों मे प्यार बेसुमार है,लफ्जो से वो इकरार नही करते और आंखों की भाषा पढ़ने में हम ज़ाहिल जरा सा है,दिखता है मुझे उसकी आंखों में प्यार बेसुमार है फ़िर भी दिल उसकी जुबां से इकरार का मोहताज है,रेत का महल सा है ये सपना उसे पाने का ।जिसे एक लहर से टूट जाना है।हर बार क्योकि टूटते ही तो आ रहे है,पर जाने दिल की ज़िद है,कभी तो हम अपना हमसफ़र पाएंगे।।बहुत बार दिल की दिमाग से जंग चलती रहती है,छोड़ आगे बढ़ बहुत है जीने के लिए पर हर बार उसकी वो दो आंखे मेरे कदमों को ठहरा देती है।।जाने क्या है उसके दिल मे मेरे लिए पर आंखे बहुत कुछ बयां कर जाती है।।नही आता मुझे उन लफ़्ज़ों को पढ़ पाना।।एक कही झूठा ख़्वाब तो नही ये सोच के घबरा जाती हूं।।
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