तोड़ दी मैंने डोर इंसानियत की फिर से

तोड़ दी मैंने डोर इंसानियत की फिर से
उठ चूका विश्वास किसी का मुझ पर से
फिर बोल उठा आज मैं अपने मन से

कि मत जला आशाओं के दीप
बुझ जायेंगे आसूं रूपी जल से
मत बनना सहारा आगे से
कह दिया मैंने वक्त से

हार-जीत से तोड़ दी दोस्ती आज से
समझौता किया हैं सुबह-शाम से
कि मतलब रखना सिर्फ अपने काम से
मत आना मेरे जेहन में आज से
कह दिया मैंने ख्वाब से

मत सुलाना अपनी बाँहों में आज से
प्रार्थना की हैं मैंने रात से
मत उठाना गर में गिर जाऊँ
वायदा लिया हैं मैंने दिन से

मत लगाना गले मुझे
गुहार लगाई हैं मैंने मौत से
अभी बहुत कुछ बाकि रह गया हैं
लेना शायद इस ज़िन्दगी से

टूट नहीं सकता अभी नाता इस दुनिया से
भले फिर से खेले मेरी ज़िन्दगी से

21 मई 2011 को लिखित

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