कि एक दिन ऐसा आये
कि एक दिन ऐसा आये
क्षण बोले कण मुस्काये
साये में धूप आ जाये
और काली आंधी भी थम जाये
उखड़े पांव जमीन में टिक जाये
आँखों की लहर से मैला आँचल धूल जाये
प्रेम का सागर छलके और सब तृप्त हो जाये
माटी की मूरतों में फिर जान आ जाये
कि सावन ऐसा आये
आधे-अधूरे मिलन की प्यास बुझ जाये
कि समुद्र मन्थन फिर हो जाये
अमृत निकले और
हर माँ प्रेम वाटिका बन जाये
कि नीलकंठी फिर आ जायें
आदमी का जहर एक घूंट में पी जायें
प्रतिशोध की आहुति देने
भोर के तारे फिर आ जायें
कि एक दिन ऐसा आये
बूँद और समुद्र के सम्बन्ध फिर हर्षाये
अंधेर नगरी के टेड़े-मेढे रास्ते ज्ञान द्वीप से जगमगाये
वीणा की गुंजन लहर फैले और
प्रेम सागर में घुल जाये
प्रेम की फुलवारी खिल जाये
और विनोद की वर्षा हो जाये
कि एक दिन ऐसा आये...........।
24 नवम्बर 2012 को बनाई गयी ये पंक्तियाँ हिंदी की प्रसिद्ध रचनाओं पर आधारित हैं।
इसकी प्रत्येक पंक्ति में एक,दो या तीन रचनाएँ हैं।
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