सुख-दुःख

पक्षियों की चहचहाहट में
भौरों की गुनगुनाहट में
मुझे जीवन का खालीपन नज़र आता हैं।

पत्तों की सरसराहट में
पशुओं की फुसफुसाहट में
मुझे जीवन का सूनापन नज़र आता हैं।

सूरज की गरमाहट में
पानी की लहराहट में
मुझे जीवन का अकेलापन नज़र आता हैं।

पैरों की आहट में
प्यारी सी मुस्कराहट में
मुझे जीवन का भारीपन नज़र आता हैं।

ना जाने क्यों इंसान सुख ही चाहता हैं
आखिर क्यों नहीं सुख से मन भर आता हैं
दुःख की इच्छा नहीं करता दुःख ही दुआओं में माँगता हैं
दुःख बाँटने की चाहत हैं पर
सुख नहीं बाँटना चाहता हैं
सुख की चाहत में प्यारा सा दुःख हाथ से निकला जाता हैं।।

................14 अगस्त   2009

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